Pustak Mahal Jhini-jhini Re Bini Prithvi Chadariya (9444B)
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- झीनी-झीनी रे बीनी पृथ्वी चदरिया कौए नहीं, हंस बनकर कबीर का जीवन जीओ कबीर ने शरीर को माटी की मूरत और कांचा कुंभ यानी कच्चा घड़ा कहा था। यानी यह माटी की मूरत या कांचा कुंभ एक धक्के से टूटकर मिट्टी में मिल जाएगा। सरश्री तेजपारखी मानव शरीर को पृथ्वी चदरिया कहते हैं और वे चदरिया के झीनी-झीनी बीनने की बात समझाकर उसे जस की तस रखने पर जोर देते हैं। वे माया, मोह, लोभ, अहंकार, मत्सर जैसे कूड़े-कचरे को त्यागकर निर्मल जीवन की प्रेरणा देते हैं
- । तीन अध्यायों में विभाजित इस किताब में कबीर के बचपन, जीवन जगत के कड़वे अनुभवों, सत्य के प्रति आग्रह, संवेदनशीलता, करुणा और संयमी जीवन के मूलगामी अर्थों तक पाठक को ले जाती है। जैसे, कबीर जीवन के अनेक विराट अध्यायों को छूते हुए एक नए संसार के पटद्वार खोलते हैं, वैसे ही यह किताब पाठकों के ज्ञान चक्षुओं को खोलती है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कबीर और भाविक पाठक के बीच का द्वैत समाप्त होकर वे एक सूत्र में बॅंध जाते हैं। कबीर के दोहों के नए-नए संदर्भों और अर्थों के कारण यह पुस्तक पाठक के भीतर सुप्त आध्यात्मिकता की गहरी नदी में एक आलोड़न पैदा करती है।
Product Name | Pustak Mahal Jhini-jhini Re Bini Prithvi Chadariya (9444B) |
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ISBN / Product Code | 9788122311259 |
Binding | Paperback |
Publisher | Pustak Mahal |
Devotional & Spiritual Books | Saints |
HSN Code | 4901 |
Company Details | Published by Pustak Mahal, Office No. J-3/16, Ansari Rd, Dariya Ganj, New Delhi, Delhi 110002. In case of any queries regarding products please call at 011 2327 2783. |
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