Sanshipt Budhcharit for Class 8

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बुद्धचरित महाकवि अश्वघोष की कवित्व-कीर्ति का आधार स्तम्भ है, किन्तु दुर्भाग्यवश यह महाकाव्य मूल रूप में अपूर्ण ही उपलब्ध है। 28 सर्गों में विरचित इस महाकाव्य के द्वितीय से लेकर त्रयोदश सर्ग तक तथा प्रथम एवम् चतुर्दश सर्ग के कुछ अंश ही मिलते हैं। इस महाकाव्य के शेष सर्ग संस्कृत में उपलब्ध नहीं है। इस महाकाव्य के पूरे 28 सर्गों का चीनी तथा तिब्बती अनुवाद अवश्य उपलब्ध है। महाकाव्य का आरम्भ बुद्ध के गर्भाधान से तथा बुद्धत्व-प्राप्ति में इसकी परिणति होती है। यह महाकव्य भगवान बुद्ध के संघर्षमय सफल जीवन का ज्वलन्त, उज्ज्वल तथा मूर्त चित्रपट है। इसका चीनी भाषा में अनुवाद पांचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में धर्मरक्ष, धर्मक्षेत्र अथवा धर्माक्षर नामक किसी भारतीय विद्वान् ने ही किया था तथा तिब्बती अनुवाद नवीं शताब्दी से पूर्ववर्ती नहीं है। इसकी कथा का रूप-विन्यास वाल्मीकि कृत रामायण से मिलता-जुलता है।

  • बुद्धचरित 28 सर्गों में था जिसमें 14 सर्गों तक बुद्ध के जन्म से बुद्धत्व-प्राप्ति तक का वर्णन है। यह अंश अश्वघोष कृत मूल संस्कृत सम्पूर्ण उपलब्ध है। केवल प्रथम सर्ग के प्रारम्भ सात श्लोक और चतुर्दश सर्ग के बत्तीस से एक सौ बारह तक (81 श्लोक) मूल में नहीं मिलते हैं। चौखम्बा संस्कृत सीरीज तथा चौखम्बा विद्याभवन की प्रेरणा से उन श्लोकों की रचना श्री रामचन्द्रदास ने की है। उन्हीं की प्रेरणा से इस अंश का अनुवाद भी किया गया है।
  • 15 से 28 सर्गों की मूल संस्कृत प्रति भारत में बहुत दिनों से अनुपलब्ध है। उसका अनुवाद तिब्बती भाषा में मिला था। उसके आधार पर किसी चीनी विद्वान् ने चीनी भाषा में अनुवाद किया तथा आक्सफोर्ट विश्वविद्यालय से संस्कृत अध्यापक डाक्टर जॉन्सटन ने उसे अंग्रेज़ी में लिखा। इसका अनुवाद श्रीसूर्यनारायण चौधरी ने हिन्दी में किया है, जिसको श्री रामचन्द्रदास ने संस्कृतपद्यमय काव्य में परिणत किया है।[1]
  • बुद्धचरित और सौन्दरनन्द महाकाव्य के अतिरिक्त अश्वघोष के दो रूपक-शारिपुत्रप्रकरण तथा राष्ट्रपाल उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त अश्वघोष की जातक की शैली पर लिखित 'कल्पना मण्डितिका' कथाओं का संग्रहग्रन्थ है
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